मुफ्त की रेवड़ियां बांटने से कर्ज में डूबता प्रदेश लाड़ली बहना जैसी मुफ्त स्कीमों ने गड़बड़ाया सरकारी बजट, 6 विभागों का रेवेन्यू टारगेट 10% बढ़ाया, चुनाव तक लेंगे 10,000 Cr का कर्ज

 



MP: लाड़ली बहना जैसी मुफ्त स्कीमों ने गड़बड़ाया सरकारी बजट, 6 विभागों का रेवेन्यू टारगेट 10% बढ़ाया, चुनाव तक लेंगे 10,000 Cr का कर्ज

2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए गेम चेंजर मानी जा रही लाड़ली बहना योजना शुरू होने के 4 महीने के भीतर ही शिवराज सरकार के जी का जंजाल बन गई है। दरअसल, महिला वोटर्स को लुभाने के चक्कर में शिवराज सरकार ने 1.25 करोड़ महिलाओं के बैंक खातों में 1 हजार रुपए डालने की शुरुआत तो कर दी है, लेकिन इस लोक लुभावन योजना के चलते सरकार के ऊपर वित्तीय बोझ बढ़ता जा रहा है। ये काफी नहीं था कि शिवराज सरकार ने इस राशि को बढ़ा कर 1250 कर दिया एवं आए दिन और भी नई-नई मुफ्त की योजना की घोषणा करती जा रही है। इन मुफ्त की स्कीमों के वित्तीय बोझ से निबटने के लिए शिवराज सरकार अब अलग-अलग तरह के तिकड़म भिड़ा रही है। कभी वो अनुपूरक बजट से पैसा जुगाड़ रही है, तो कभी विभिन्न विभागों को अपना रेवेन्यू कलेक्शन बढ़ाने के लिए फरमान दें रही है और कभी वो क़र्ज़ ले रही है। हालत यह हैं कि पिछले 1 साल में मध्य प्रदेश के सरकारी कर्ज के ग्राफ में 1 लाख करोड़ रु की बढ़ोत्तरी हुई है। पढ़िए लाड़ली बहना योजना और अन्य फ्री की योजनाओं के चलते मध्य प्रदेश के बढ़ते क़र्ज़ का पूरा किस्सा...



लाड़ली बहना योजना का अंकगणित



योजना लांच करते वक़्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी इस महत्वाकांक्षी और क्रांतिकारी योजना का लाभ अधिकतम 1 करोड़ महिलाओं को देने की बात की थी। यानी महीने में 1250 करोड़ रुपए और सालभर में 12000 करोड़ रुपए का खर्चा। लेकिन योजना में उम्मीद से ज्यादा रेजिस्ट्रेशन हुए और 1 करोड़ 25 लाख 5 हज़ार 9 सौ 47 महिलाएं योजना के लिए पात्र हुई। यानी उम्मीद से करीब 25 लाख ज्यादा पात्र। लिहाजा उसे हर महीने 1562 करोड़ के लगभग रुपए के बजट की जरूरत होगी और सालाना 19 हजार करोड़ रुपए लगभग की। अब 1 मार्च, 2023 को जो राज्य बजट पेश हुआ था, उसमें लाडली बहना योजना के लिए सिर्फ 8 हजार करोड़ रुपये ही तय हुए थे। जो कि पहले ही योजना की सालभर की जरुरत से कम थे...सिर्फ 8 महीने (जनवरी 2023) तक के लिए। उसपर हितग्राही बहनो की संख्या बढ़ने से शिवराज सरकार पर करीब सवा करोड़ यानी 1 करोड़ 25 लाख महिलाओं के खाते में हर महीने 1 हजार डालने का दबाव आ गया है। लिहाजा अब उसे हर महीने  1562 करोड़ रुपए के बजट की और सालाना 19 हजार करोड़ रुपए के बजट की जरुरत है। हाल ही में शिवराज ने घोषणा की है कि योजना की राशि धीरे-धीरे 3000 रुपए प्रति हितग्राही प्रतिमाह तक बढ़ा दी जाएगी...अगर ऐसा हुआ तो ऐसी स्थिति में सरकार को हर महीने सवा करोड़ महिलाओं के लिए  3 हजार 750 करोड़ रुपए की जरुरत होगी और सालाना 45 हजार करोड़ रु. का खर्च। अब इसी जरुरत को पूरा करने के लिए अनुपूरक बजट, रेवेन्यू टारगेट बढ़ाने और सरकार क़र्ज़ जैसे हर जरुरी तरीके अपना रही है।


आधा दर्जन विभागों के टारगेट में बढ़ाई 10 फीसदी राशि



अनुपूरक बजट के बावजूद योजना के बजट में कुछ कमी न रह जाए, इसके लिए वित्त मंत्रालय ने सरकार के 6 अलग-अलग  विभागों से अपना रेवेन्यू कलेक्शन टारगेट 10 फीसदी तक बढ़ाने की बात कही है। इन विभागों में जो मुख्य हैं - परिवहन विभाग, ऊर्जा विभाग, राजस्व विभाग, लोकसंपत्ति प्रबंधन विभाग, कमर्शियल टैक्स विभाग, और माइनिंग विभाग।





मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले, राज्य सरकार मतदाताओं को लुभाने के लिए कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा कर रही है




अन्य लोकलुभावन फ्री स्कीम्स और सरकार पर बढ़ता बोझ



जैसा हमने पहले बताया कि सरकार ने सिर्फ लाड़ली बहनों के लिए ही अपना ख़ज़ाना नहीं खोला है, बल्कि समाज के अन्य वोटरवर्ग के वोट बटोरने के लिए लाड़ली बहना योजना जैसी ही कई और भी लोकलुभावन फ्री स्कीम्स की घोषणा की है। लाड़ली बहना योजना की तरह इन घोषणाओं का भी सरकारी खजाने पर भारी-भरकम असर पड़ा है...


2023 के पहले 6 महीनें में ही लिया 30 हजार करोड़ का कर्ज



मध्य प्रदेश सरकार इस साल के 6 महीनों में अब तक अलग-अलग तारीखों पर 11 बार कर्ज ले चुकी है। जनवरी, फरवरी, मार्च, मई और जून में सरकार ने RBI से  लोन लिया है।




जनवरी में 2 हजार रुपए करोड़ का कर्ज


फरवरी में 4 बार में 12000 करोड़ का लोन


मार्च में 3 बार में 10000 करोड़ का कर्ज


मई में 2000 करोड़ रुपए


जून में 4000 करोड़ में रुप 

सतंबर 2023  में 1000 करोड़ रुपये के कर्ज लिए हैं. इस प्रकार सरकार ने लगभग पौने चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लिया.



तारीखों से हिसाब से लोन




25 जनवरी 2023- 2000 करोड़


02 फरवरी 2023- 3000 करोड़


09 फरवरी 2023- 3000 करोड़


16 फरवरी 2023-3000 करोड़


23 फरवरी 2023- 3000 करोड़


02 मार्च 2023- 3000 करोड़


09 मार्च 2023- 2000 करोड़


17 मार्च 2023- 4000 करोड़


24 मार्च 2023- 1000 करोड़


29 मई 2023- 2000 करोड़


14 जून 2023- 4000 करोड़



चुनाव तक जारी रहेगा क़र्ज़ लेने का सिलसिला



लाड़ली बहना और अन्य मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए क़र्ज़ लेने का ये सिलसिला यही नहीं रुकने वाला है, बल्कि RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के एक बुलेटिन में ये खुलासा हुआ है कि मप्र सरकार आगामी नवम्बर के चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले RBI से जुलाई से सितंबर माह के बीच 3 माह में 10 हजार करोड़ का लोन लेगी। अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में चुनाव की आचार संहिता लग जाएगी। इसके पहले 2 हज़ार करोड़ का एक लोन जुलाई माह में, फिर अगस्त महीने में 2 हजार करोड़ के दो लोन और सितंबर माह में भी 2 हजार करोड़ के दो लोन लिए जाएंगे। लोन लेने कि प्रक्रिया को लेकर MP सरकार ने RBI से बातचीत भी कर ली है।

कब-कब लेगी मप्र सरकार कर्ज



21 सितंबर- 2 हजार करोड़ रुपए

यानी कुल मिलाकर सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाने की पूरी तैयारी है। अब सवाल खड़ा हो रहा है कि एक आम आदमी पर इसका कितना असर हो रहा है? इसका जवाब बड़ा सीधा सा है। अपनी कमाई से जब आप बचत ही नहीं कर पाएंगे और जब आपके परिवार में खर्चों में कटौती होने लगेगी तब इसका एहसास होता है। कैसे? समझिये...



मुफ्त की रेवड़ियां बांटने से बढ़ेगी टैक्स की मार:   इकोनॉमिस्ट



इकोनॉमिस्ट मुताबिक मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का ये कल्चर डायबिटिज बीमारी की तरह है। पता ही नहीं चलता कि कब बीमारी का शिकार हो गए। ऐसे ही कब टैक्स की मार पड़ जाएगी और उसकी जेब खाली हो जाएगी, ये पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि इसका तात्कालिक असर नहीं होता। अर्थशास्त्रियों का ये भी कहना है कि जो कर्ज लिया जा रहा है यदि उसका इस्तेमाल सही तरीके से नहीं किया गया तो ये संकट की आहट है। 




पीएम मोदी की दोहरी नीति

अब इसे ऐसे समझिए - पिछले दिनों पीएम मोदी ने कहा था कि बीजेपी शासित राज्यों में पेट्रोल की कीमत 100 रु. से कम है। लेकिन मप्र में पेट्रोल की कीमत करीब 109 रु. है। अब मप्र सरकार चाहकर भी इसे कम नहीं कर पा रही क्योंकि ये उसकी आय का साधन है। पेट्रोल की वास्तविक कीमत 57 रु. है और सरकार आम जनता से 51 रु. ज्यादा टैक्स वसूल रही है। इसी तरह से बिजली में 22 हजार करोड़ रु. की सब्सिडी दे रही है। इसका फायदा कुछ वर्ग के लोगों को मिल रहा है। बाकी बचे हुए ईमानदार उपभोक्ता बिजली का बिल भर रहे हैं। लेकिन सरकार इसी तरह से कर्ज लेती रही तो उसे इसकी भरपाई के लिए टैक्स की राशि बढ़ाना पड़ेगी। इतना तो तय है।  क्योंकि सरकार की कमाई भी बजट के मुकाबले कम ही होती है। साल 2022-23 में मप्र सरकार की आय थी करीब 2 लाख 4 हजार करोड़ यानी बजट  से करीब एक लाख करोड़ रु. कम। अर्थशास्त्री मानते हैं कि चादर से ज्यादा पैर फैलाना हमेशा नुकसानदायक है। 



योजनाओं की पूर्ती के लिए सरकार कर्ज ले रही है और लोगों को दिए जा रहे मुफ्त के पैसों को सरकार समाज कल्याण का नाम देती है। लेकिन बगैर किसी काम के यूं ही पैसे दे देना भीख देने के समान ही है। खास बात ये है कि विपक्ष, जो सत्ता में नहीं है वो ऐसी घोषणाएं करें तो समझ आता है, मगर यहां तो सत्ताधारी दल ही इस राह पर चल पड़े हैं। और जो ऐलान किए जा रहे हैं वो राज्य की तरक्की नहीं कर रहे हैं। अगर तरक्की की रफ्तार तेज़ हो तो कर्ज़ लेना और चुकाना मुश्किल नहीं होता है। लेकिन जब तरक्की पर ही सवाल हों और कमाई कम हो रही हो, तो क़र्ज़ गले का फंदा बनने में देरी नहीं करता। खुद पीएम मोदी भले ही कहते हो कि वो फ्री बीज पॉलिटिक्स के लिए फिट नहीं है, लेकिन उन्हीं की पार्टी के नेता इस पॉलिटिक्स में खुद को फिट मानते हैं। परन्तु पीएम मोदी इस बात पे मोन है

क्या यह बात पीएम के दोहरी निति है 

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